हरी ओम !
आज मेरा बड़ा मन कर रहा है के में हिंदी में कुछ लिखुँ। चलो कबीर के दोहों से सुरुवात किया जाये।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
भला इस बात को आज के ज़माने में कितने लोग समझते हैं।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए. तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का.
कहने को बहुत कुछ है पर आज के लिए इतना ही काफी है.
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